झज्जर: लिवर शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग है, जो पोषक तत्वों को संसाधित करने, रक्त को छानने, पित्त (बाइल) बनाने, हार्मोन संतुलित करने, ब्लड शुगर और क्लॉटिंग को नियंत्रित करने और संक्रमण से लड़ने जैसे कई जरूरी कार्य करता है। ऐसे में यदि लिवर को कोई नुकसान होता है और समय रहते उसका इलाज नहीं किया जाए, तो यह जीवन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
भारत में हर साल लाखों लोग लिवर संबंधी बीमारियों से प्रभावित होते हैं और यह मृत्यु के सबसे आम कारणों में से एक बन चुका है। इसके बावजूद, लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता की भारी कमी है क्योंकि लिवर की बीमारियां अक्सर चुपचाप बढ़ती हैं और शुरुआती चरण में कोई विशेष लक्षण नहीं दिखातीं।
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी, हेपाटोलॉजी एवं एंडोस्कोपी विभाग के डायरेक्टर एवं यूनिट हेड डॉ. लवकेश आनंद ने बताया कि “आम जनता में लिवर डैमेज को लेकर कई गलतफहमियां हैं, जैसे यह मानना कि लिवर की क्षति स्थायी होती है। जबकि सच्चाई यह है कि लिवर में खुद को दोबारा विकसित करने की क्षमता होती है, और अगर बीमारी शुरुआती चरण में हो जैसे फैटी लिवर या हेपाटाइटिस, तो जीवनशैली में बदलाव कर उसे ठीक किया जा सकता है। लोगों का यह भी मानना है कि अगर वे शराब पीना छोड़ भी दें तो लिवर ठीक नहीं होगा, जबकि शराब से परहेज करने से लिवर को काफी हद तक ठीक होने में मदद मिल सकती है, बशर्ते क्षति बहुत अधिक न हो। इसके अलावा, यह धारणा भी गलत है कि सिर्फ शराब पीने वाले ही लिवर की बीमारी का शिकार होते हैं। मोटापा, डायबिटीज, हेपाटाइटिस बी और सी, कुछ दवाइयां (यहां तक कि आयुर्वेदिक या हर्बल दवाएं भी), और कुछ ऑटोइम्यून रोग भी लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कई लोग यह भी सोचते हैं कि हर्बल दवाओं से लिवर की बीमारी का इलाज संभव है, लेकिन यह गलत है क्योंकि गंभीर स्थितियों में विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध उपचार ही कारगर होते हैं। अधिकतर मामलों में लिवर की बीमारी के शुरुआती लक्षण बहुत सामान्य जैसे कमजोरी, थकान, पेट फूलना या अपच के रूप में नजर आते हैं, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।
डॉ. आनंद ने यह भी बताया कि “समय पर जांच और स्क्रीनिंग से इन बीमारियों को शुरुआती चरण में पकड़ कर इलाज आसान किया जा सकता है। सिरोसिस से पीड़ित लोगों को अक्सर लगता है कि उन्हें अब लिवर ट्रांसप्लांट ही कराना पड़ेगा, लेकिन यह भी जरूरी नहीं होता। अगर समय पर कारणों को रोका जाए—जैसे शराब छोड़ना, वजन नियंत्रित करना या हेपाटाइटिस का इलाज—तो लिवर की कार्यक्षमता काफी हद तक बनी रह सकती है। केवल तब ही ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है जब दवाओं से सुधार नहीं हो रहा हो या लिवर कैंसर का प्रारंभिक चरण सर्जरी से न हटाया जा सके।“
लिवर को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, वजन नियंत्रण, शराब और अनावश्यक दवाओं से दूरी बेहद आवश्यक है। समय-समय पर हेल्थ चेकअप करवा कर लिवर की स्थिति को जानना और डॉक्टर की सलाह के अनुसार जीवनशैली अपनाना, लिवर को लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखने में मददगार हो सकता है।
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