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हाल
के महीनों में तुर्की और भारत के बीच भूमध्य सागर में बढ़ती तनातनी ने पूरी दुनिया
का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस संघर्ष की जड़ें कई स्तरों पर फैली हैं, जिनमें
पाकिस्तान के साथ तुर्की की सैन्य साझेदारी और भारत द्वारा ग्रीस, साइप्रस, तथा आर्मेनिया
जैसे तुर्की-प्रतिद्वंदी देशों से संबंध मजबूत करना शामिल है। मई 2025 में जब भारत
ने कश्मीर के पहलगाम पर हुए आतंकी हमले के जवाब में 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया, उस समय
तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। तुर्की ने पाकिस्तानी हमलों के दौरान
तुर्की निर्मित ड्रोन भारतीय शहरों पर छोड़े और पाकिस्तान को हर आवश्यक कूटनीतिक, सैन्य
और मीडिया सहयोग दिया। इसका भारत में व्यापक आक्रोश देखने को मिला, जिससे द्विपक्षीय
संबंध बुरी तरह प्रभावित हुए।
इसके
जवाब में भारत ने पहले तो तुर्की के कुछ मीडिया संस्थानों के सोशल मीडिया अकाउंट्स
ब्लॉक किए, और कुछ तुर्की कंपनियों की सुरक्षा मंजूरी वापस ले ली। लेकिन वास्तविक भड़काव
तब हुआ, जब भारत ने भूमध्य सागर में ग्रीस और साइप्रस के साथ साझा नौसैनिक अभ्यास शुरू
किया। तुर्की ने इस पर आपत्ति जताते हुए, इसे अपनी समुद्री सीमा का उल्लंघन बताया और
भारत से अपने युद्धपोत 18 घंटे में हटाने का अल्टीमेटम दे डाला। तुर्की ने भारतीय युद्धपोतों
को समुद्र में डुबाने की धमकी दी, वहीं भारत ने संयम बरतते हुए शुरुआत में कोई तीखा
जवाब नहीं दिया।
भारत
का युद्धपोत 'त्रिकंद' जब से भूमध्य सागर में पहुंचा, तभी से तनातनी चरम पर थी। तुर्की
ने रेडियो सिग्नल और संदेशों के जरिये भारतीय युद्धपोतों पर दबाव बनाने की कोशिश की।
लेकिन असल में भारत ने अपनी तैयारी इतनी मजबूत कर रखी थी कि तुर्की को हालात की गंभीरता
का जल्दी ही एहसास हो गया। भारत ने अपने तीन और युद्धपोतों को भी उत्तर अटलांटिक महासागर
और लाल सागर के रास्ते भूमध्य सागर पहुंचा दिया। इसे देखकर तुर्की की नौसेना के मनोबल
पर गहरा असर पड़ा, और उन्होंने अपने युद्धपोत पीछे हटाने शुरू कर दिए। वहीं ग्रीस से
अभ्यास के लिए आए भारतीय युद्धपोत ने अपनी ब्रह्मोस मिसाइल तुर्की के जहाजों के पास
परीक्षण के तौर पर छोड़ी, सीधे टारगेट ना कर के सिर्फ चेतावनी स्वरूप।
इस
दौरान अंतरराष्ट्रीय कानून, particularmente यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी
(UNCLOS) भारत के पक्ष में रहा; क्योंकि जिस क्षेत्र में भारत का युद्धपोत तैनात था,
वह अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र माना जाता है। यही वजह है कि रूस, इजराइल, ग्रीस जैसी ताकतों
ने भी भारत के रुख का समर्थन किया और तुर्की को चेतावनी दी कि ऐसी उकसावे की कार्रवाई
का मुंहतोड़ जवाब मिल सकता है। भारत ने सार्वजनिक तौर पर यह स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य
ग्रीस और साइप्रस के साथ नौसैनिक अभ्यास करना था — न कि किसी भी तीसरे देश को उकसाना।
ऐसे सैन्य अभ्यासों में बाहरी हस्तक्षेप सीधे तौर पर युद्ध नीति का उल्लंघन मानी जाती
है।
इस
पूरे घटनाक्रम का दिलचस्प पहलू यह है कि भारत की 'ब्लू वाटर नेवी' (गहरे समुद्र तक
ताकतवर नौसेना) ने साबित कर दिया कि उसकी सैन्य उपस्थिति सिर्फ हिंद महासागर तक सीमित
नहीं है, बल्कि वो भूमध्य सागर जैसी परीक्षण स्थली पर भी मजबूती के साथ अपनी स्थिति
बना सकती है। इस पूरे मामले को देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ग्रीस और साइप्रस
के साथ भारत के रक्षा संबंध और मजबूत होंगे, और भारत द्वारा लंबी दूरी वाली क्रूज मिसाइलों
की संभावित आपूर्ति इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिति को बदल सकती है। दूसरी तरफ तुर्की
और पाकिस्तान की साझेदारी दक्षिण एशिया के साथ-साथ पूर्वी भूमध्य सागर में भी नए खतरनाक
समीकरण तैयार कर सकती है।
भूमध्य सागर में भारत और तुर्की के टकराव ने स्पष्ट कर दिया है कि क्षेत्रीय कूटनीतिक और सुरक्षा समीकरण अब केवल दो देशों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था इस बदलाव के दौर में प्रवेश कर चुकी है। जहां भारत अपनी छवि एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहा है, वहीं तुर्की बार-बार सैन्य विवादों में उलझकर अपने क्षेत्रीय संबंधों को नुकसान पहुंचा रहा है। फिलहाल, तुर्की को यह समझने की जरूरत है कि भारत अब दोतरफा चुनौतियों का जवाब देने के लिए हर स्तर पर तैयार है, और ऐतिहासिक रूप से भूमध्य सागर भारत के लिए नई चुनौतियां और अवसर दोनों लेकर आया है।

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