पुतिन का भारत दौरा: रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीय कूटनीति के नए युग की शुरुआत

पुतिन का भारत दौरा: रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीय कूटनीति के नए युग की शुरुआत
Image Courtesy: AajTak 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का 4–5 दिसंबर 2025 का भारत दौरा केवल एक सालाना शिखर सम्मेलन भर नहीं, बल्कि बदलते वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच भारत‑रूस संबंधों की नई रेखाएँ खींचने वाला क्षण माना जा रहा है। यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, ऊर्जा बाज़ारों के पुनर्गठन और एशिया‑प्रशांत की उभरती राजनीति के बीच यह यात्रा यह संकेत देती है कि दोनों देश अपनी “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” को नए सिरे से परिभाषित करने के इच्छुक हैं।​ 


दौरे की पृष्ठभूमि और समय का महत्व

पुतिन की यह यात्रा लगभग चार साल बाद हो रही है, क्योंकि पिछली बार वे 2021 में भारत आए थे और उसके तुरंत बाद रूस‑यूक्रेन युद्ध ने पूरी वैश्विक राजनीति की दिशा बदल दी। इस बीच भारत ने एक ओर अमेरिका, यूरोप, जापान जैसे साझेदारों के साथ रिश्ते मज़बूत किए, वहीं दूसरी ओर रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित की, जिससे नई दिल्ली की “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति व्यावहारिक रूप से सामने आई। ऐसे माहौल में दिसंबर 2025 का यह दौरा दुनिया के लिए संकेत है कि तमाम दबावों के बावजूद भारत‑रूस समीकरण न तो टूटे हैं, न ही किनारे हुए हैं, बल्कि नए संतुलन के साथ आगे बढ़ रहे हैं।​ 


कार्यक्रम और कूटनीतिक संकेत

दो दिवसीय यह राज्य यात्रा तकरीबन 30 घंटे की है, जिसमें औपचारिक स्वागत, राजघाट पर श्रद्धांजलि, हैदराबाद हाउस में शिखर वार्ता, प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत, व्यावसायिक मंच और राष्ट्रपति द्वारा आयोजित राज्य भोज शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निजी रात्रिभोज और सीमित दायरे की बातचीत यह दिखाती है कि रिश्तों में व्यक्तिगत केमिस्ट्री और गोपनीय रणनीतिक विमर्श को भी उतना ही महत्व दिया जा रहा है जितना औपचारिक समझौतों को। राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत और भोज यह संदेश भी देता है कि भारत, रूस को आज भी अपने सबसे पुराने और भरोसेमंद साझेदारों में शुमार रखता है, भले ही मंच अब बहुध्रुवीय हो।​ 


रक्षा सहयोग: पुराने भरोसे पर नई परत

भारत‑रूस संबंधों की रीढ़ अब भी रक्षा सहयोग है, जो सोवियत काल से चला आ रहा है और आज भी भारतीय शस्त्रागार का बड़ा हिस्सा रूसी मूल का है। इस दौरे के दौरान अतिरिक्त S‑400 वायु रक्षा रेजीमेंट, लड़ाकू विमानों और आधुनिक सैन्य प्लेटफॉर्म्स में तकनीक हस्तांतरण और संभावित संयुक्त उत्पादन जैसे मुद्दों पर गंभीर बातचीत की अपेक्षा की जा रही है। यदि नई डील या सहमति बनती है, तो वह भारत के “आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन” लक्ष्य के साथ मेल खाते हुए रूस को पश्चिमी तकनीकी अवरोधों के बीच एक स्थायी बाज़ार और साझेदार भी प्रदान करेगी।​​ 


ऊर्जा, तेल और परमाणु सहयोग

यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रियायती रूसी कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बनकर अपने आयात बिल को काफी हद तक नियंत्रित किया, जबकि रूस को एशियाई बाज़ार का भरोसेमंद विकल्प मिला। इस यात्रा में तेल‑गैस के दीर्घकालिक अनुबंध, भुगतान तंत्र, समुद्री मार्ग तथा आर्कटिक ऊर्जा परियोजनाओं में भारतीय भागीदारी जैसे मुद्दे एजेंडे पर रहने की संभावना है, ताकि दोनों देश डॉलर‑केंद्रित व्यवस्था से आंशिक दूरी बनाकर अधिक लचीला ढांचा तैयार कर सकें। साथ ही, कुडनकुलम जैसे चल रहे परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट्स की गति, नई इकाइयों की संभावना और स्थानीयकरण की स्तर वृद्धि पर भी विमर्श भारत की स्वच्छ ऊर्जा और ऊर्जा सुरक्षा दोनों दृष्टि से निर्णायक होगा।​​ 


व्यापार, तकनीक और नया आर्थिक ढाँचा

भारत और रूस का व्यापारिक संतुलन फिलहाल तेल‑केंद्रित और असंतुलित है, जहाँ भारत का आयात कहीं ज़्यादा और निर्यात सीमित है। इस असंतुलन को घटाने के लिए फार्मास्युटिकल्स, आईटी सेवाओं, कृषि उत्पादों, मशीनरी और रसायनों जैसे क्षेत्रों में भारतीय निर्यात बढ़ाने पर ज़ोर दिए जाने की संभावना है, ताकि रिश्ते केवल “ऊर्जा और हथियार” से आगे बढ़कर विविधीकृत आर्थिक साझेदारी का रूप ले सकें। डिजिटल भुगतान, फिनटेक, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष तकनीक और संचार अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाएँ दोनों देशों को न केवल आर्थिक लाभ देंगी, बल्कि पश्चिम‑प्रभुत्व वाले टेक इकोसिस्टम का विकल्प भी तैयार करेंगी।​​ 


श्रम, शिक्षा और लोगों के बीच प्रत्यक्ष संपर्क

रूस की घटती आबादी और श्रम‑संकट के बीच विदेशी कार्यबल की आवश्यकता बढ़ रही है, और इस संदर्भ में भारत कुशल और अर्ध‑कुशल मानव संसाधन का स्वाभाविक स्रोत बन सकता है। यदि इस दौरे में श्रम, कौशल विकास और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े समझौतों की दिशा में प्रगति होती है, तो भारतीय युवाओं के लिए रूस में वैध और संरक्षित रोज़गार अवसर खुल सकते हैं, जो भारत‑रूस रिश्तों में नया मानवीय आयाम जोड़ेगा। साथ ही शिक्षा, उच्च तकनीकी प्रशिक्षण, संयुक्त अनुसंधान और छात्र विनिमय कार्यक्रमों को मज़बूत करने से दोनों समाजों के बीच जन‑स्तर पर भरोसा और समझ बढ़ेगी, जो किसी भी दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की मूल शर्त है।​​ 


वैश्विक राजनीति और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता

अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए यह दौरा एक संकेत है कि भारत, इंडो‑पैसिफिक और क्वाड जैसे मंचों पर सक्रिय रहते हुए भी रूस को पूरी तरह छोड़ने वाला नहीं है, बल्कि संतुलित बहुपक्षीयता की राह पर चल रहा है। रूस के लिए भी यह दिखाना ज़रूरी है कि वह केवल चीन पर निर्भर नहीं है, बल्कि एशिया में उसके पास भारत जैसा बड़ा, लोकतांत्रिक और उभरती अर्थव्यवस्था वाला साझेदार है, जिसके साथ उसकी “सैन्य‑रणनीतिक मित्रता” दशकों पुरानी है। इस संदर्भ में पुतिन‑मोदी मुलाकात उन सूक्ष्म संदेशों का मंच बनेगी, जिनके ज़रिए दोनों नेता पश्चिम, चीन, मध्य‑एशिया और वैश्विक दक्षिण के प्रति अपने‑अपने दृष्टिकोणों का सामंजस्य साधने की कोशिश करेंगे।​ 


भारत‑रूस बनाम अन्य साझेदारियाँ: एक नज़रिया

भारत की विदेश नीति अब “अथवा” नहीं, “और भी” के सिद्धांत पर चल रही है, जहाँ अमेरिका, यूरोप, जापान, खाड़ी देश और रूस सभी अलग‑अलग आयामों में महत्वपूर्ण हैं। पुतिन का यह दौरा इस दृष्टिकोण को पुष्ट करता है कि भारत न तो किसी एक खेमे में पूरी तरह झुकना चाहता है, न ही किसी पुराने दोस्त को नए दबावों के कारण छोड़ना चाहता है, बल्कि व्यावहारिक हितों और दीर्घकालिक सामरिक लक्ष्यों के बीच संतुलन साधना चाहता है। परिणामस्वरूप, भारत‑रूस संबंध अब “भावनात्मक” या “ऐतिहासिक” नारे भर नहीं, बल्कि हित‑आधारित, बहुस्तरीय और समयानुकूल पुनर्व्याख्या के चरण में प्रवेश कर रहे हैं।​ 


संभावित परिणाम और आगे की दिशा

इस दौरे से दर्जनों समझौतों और संयुक्त वक्तव्यों की उम्मीद की जा रही है, लेकिन असल कसौटी यह होगी कि कितने करार ज़मीन पर समयबद्ध तरीके से उतरते हैं, खासकर रक्षा सह‑उत्पादन, ऊर्जा निवेश, भुगतान तंत्र और मानव संसाधन सहयोग के क्षेत्र में। यदि दोनों देश व्यापार असंतुलन घटाने, तकनीक साझा करने और दीर्घकालिक ऊर्जा‑सुरक्षा ढाँचा बनाने में ठोस प्रगति दर्ज करते हैं, तो पुतिन की यह भारत यात्रा आने वाले दशक के लिए भारत‑रूस रिश्तों की नई रूपरेखा तय कर सकती है। इस अर्थ में दिसंबर 2025 का यह दौरा केवल 30 घंटे की कूटनीतिक कवायद नहीं, बल्कि बदलते विश्व‑व्यवस्था में दो पुराने साझेदारों का नया “रणनीतिक घोषणापत्र” साबित हो सकता है।

 

भारत की विदेश नीति पर इस दौरे का दीर्घकालिक महत्व

यह दौरा भारत की दीर्घकालिक विदेश नीति में “रणनीतिक स्वायत्तता, बहुध्रुवीयता और संतुलित साझेदारी” को और मज़बूत करने वाला मील का पत्थर बन सकता है। इससे यह संकेत गया है कि भारत पश्चिम और रूस‑चीन दोनों ध्रुवों के बीच अपने हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने की नीति पर ही आगे बढ़ेगा।​ 


रणनीतिक स्वायत्तता की पुनर्पुष्टि

पुतिन की यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत, अमेरिका‑यूरोप के साथ रक्षा, तकनीक और इंडो‑पैसिफिक साझेदारियाँ बढ़ा रहा है, जबकि रूस पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच चीन के साथ नज़दीक आ रहा है। इसके बावजूद भारत ने रूसी राष्ट्रपति की मेज़बानी कर यह स्पष्ट किया कि वह किसी एक खेमे में बंधने के बजाय “इश्यू‑बेस्ड” और “इंटरस्ट‑बेस्ड” साझेदारियों की नीति पर टिके रहना चाहता है।​ 


बहुध्रुवीय विश्व‑व्यवस्था में भारत की भूमिका

भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स और जी‑20 जैसे मंचों पर बहुध्रुवीय, अधिक समतामूलक वैश्विक व्यवस्था की वकालत कर रहा है। रूस के साथ खुला संवाद और उच्चस्तरीय संपर्क भारत को यह स्थिति बनाए रखने में मदद देता है कि वह न केवल पश्चिम, बल्कि “यूरेशियन धुरी” में भी एक विश्वसनीय, स्वतंत्र स्तंभ दिखे।​ 


रक्षा और सुरक्षा निर्भरताओं का पुनर्संतुलन

रूस से रक्षा सहयोग जारी रखकर भारत यह संकेत देता है कि वह पारंपरिक सैन्य स्रोतों को पूरी तरह छोड़ने वाला नहीं, बल्कि उन्हें “टेक ट्रांसफर और को‑प्रोडक्शन” के माध्यम से नए रूप में ढालना चाहता है। दीर्घकाल में इसका मतलब यह है कि भारत अपनी सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण में “मल्टी‑सोर्स्ड” मॉडल अपनाएगा, जहाँ रूस एक महत्वपूर्ण, पर एकाधिकार वाला नहीं, पार्टनर रहेगा।​ 


ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विविधीकरण

रियायती रूसी तेल और गैस पर आधारित व्यवस्था ने दिखाया कि संकट की घड़ी में भी भारत अपने ऊर्जा स्रोतों को राजनीतिक दबाव से अलग रखकर देखता है। दीर्घकाल में यह रुझान भारत की विदेश नीति को इस दिशा में ले जाएगा कि वह खाड़ी, रूस, अमेरिका और नवीकरणीय ऊर्जा सभी को मिलाकर “मल्टी‑पिलर ऊर्जा सुरक्षा” आर्किटेक्चर खड़ा करे।​ 


पश्चिम और रूस के बीच संतुलन

यह दौरा पश्चिम में इस संदेश के साथ गया कि भारत क्वाड, I2U2, इंडो‑पैसिफिक जैसे मंचों से पीछे नहीं हट रहा, लेकिन साथ ही मॉस्को के साथ ऐतिहासिक रणनीतिक रिश्तों को भी खत्म नहीं करेगा। इससे आने वाले वर्षों में भारत को यह कूटनीतिक स्पेस मिलता है कि वह रूस‑पश्चिम टकराव की स्थिति में भी दोनों से संवाद बनाए रखकर कई मुद्दों पर “ब्रिज” या “मध्यस्थ” जैसी रचनात्मक भूमिका निभा सके।​ 


वैश्विक दक्षिण और ब्रिक्स+ में वजन

रूस के साथ समीपता बनाए रखते हुए भारत ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और संभावित “ब्रिक्स+” ढाँचों में अपनी साख मजबूत करता है, जहाँ रूस और चीन दोनों प्रभावशाली हैं। इससे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कई देशों के लिए भारत एक ऐसे पार्टनर के रूप में उभरता है जो पश्चिम से भी बात कर सकता है और मॉस्को‑बीजिंग धुरी तक भी सीधी पहुँच रखता है।​ 


दीर्घकालिक स्तर पर इस दौरे का महत्व यह है कि यह भारत की विदेश नीति को “चयन की आज़ादी” (freedom of choice) और “बहु‑साझेदारिता” (multi‑alignment) के मॉडल पर आगे बढ़ने की वैधता प्रदान करता है। आने वाले वर्षों में, चाहे यूक्रेन युद्ध जैसे संकट हों या एशिया‑प्रशांत में शक्ति‑संघर्ष, भारत इस यात्रा को एक उदाहरण के रूप में पेश कर सकेगा कि उसने सिद्धांततः किसी खेमे की राजनीति नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों और बहुध्रुवीय विश्व‑दृष्टि को प्राथमिकता दी।​

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