लद्दाख हिंसा के पीछे किसका हाथ? केंद्र ने वांगचुक को घेरा, भाजपा ने कांग्रेस पर उठाए गंभीर सवाल

लद्दाख हिंसा के पीछे किसका हाथ? केंद्र ने वांगचुक को घेरा, भाजपा ने कांग्रेस पर उठाए गंभीर सवाल

 केंद्र ने वांगचुक के भड़काऊ बयानों को हिंसा की जड़ बताया

हाल ही में लद्दाख में उठे तीखे घटनाक्रमों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि वहाँ हुई भीड़-हिंसा का मुख्य प्रोत्साहक सोनम वांगचुक के कुछ उत्तेजक बयानों और वीडियो रहे। गृह मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि बुधवार सुबह हुई हिंसा को छोड़कर स्थिति शाम तक नियंत्रण में आ गई थी, और लोगों से अपील की गई कि वे मीडिया व सोशल मीडिया पर पुराने या भड़काऊ वीडियो और पोस्ट न फैलाएँ। सरकार ने यह भी दोहराया कि वह संवैधानिक ढाँचे के भीतर लद्दाख की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध है। 


बयान में विस्तृत तौर पर बताया गया कि सरकार और लद्दाख के प्रतिनिधि—विशेष रूप से लेह-कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेताओं—के बीच बातचीत लगातार जारी है। इन बैठकों से कुछ महत्वपूर्ण नतीजे भी सामने आए हैं: लद्दाख के अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 45% से बढ़ाकर 84% करने का निर्णय लिया गया, परिषदों में महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण सुनिश्चित किया गया, और भोटो व पुरगी भाषाओं को आधिकारिक मान्यता दी गई। साथ ही प्रशासनिक स्तर पर 1,800 पदों की भर्ती की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। सरकार का कहना है कि ये कदम स्थानीय लोगों की संवैधानिक व आर्थिक मांगों के जवाब में उठाये जा रहे हैं। 


वहीं, मंत्रालय ने यह भी जताया कि कुछ राजनीतिक हितधारक इस प्रगति से संतुष्ट नहीं थे और वे बातचीत की प्रक्रिया में व्यवधान डालने की कोशिश कर रहे थे। बयान में यह उल्लेख है कि सोनम वांगचुक ने 10 सितंबर से छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा देने की माँग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की थी। कथित तौर पर उनकी हड़ताल और उसके दौरान दिए गये भाषणों ने कुछ लोगों को उकसाया, जिससे सुबह के समय हिंसा भड़क उठी। 


हिंसा कैसे भड़क उठी — घटनाओं का सिलसिला

घटना के विवरण के मुताबिक, बुधवार सुबह करीब 11:30 बजे वांगचुक के अलोकप्रिय और भड़काऊ बयान से प्रेरित एक भीड़ ने स्थानीय राजनीतिक दल के कार्यालय और लेह के सीईसी (जनगणना/प्रशासनिक) कार्यालय पर धावा बोल दिया। इन हमलों में कार्यालयों में आग लगाने, सुरक्षाकर्मियों पर हमला करने और सरकारी वाहन जला देने की घटनाएँ शामिल थीं। पुलिस कर्मियों पर भीड़ द्वारा हमला किया गया और कई सुरक्षाकर्मियों को चोटें आईं—रिपोर्टों के अनुसार 30 से अधिक जवान घायल हुए। आत्मरक्षा में पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें कुछ लोगों की जान चली गई। इसी बीच खबर मिली कि वांगचुक ने अपनी भूख हड़ताल बंद कर दी थी। मंत्रालय ने कहा कि ऐसे नाजुक हालात में अफवाहें और पुराने भड़काऊ वीडियो फैलाने से स्थिति और बिगड़ सकती थी, इसलिए मीडिया व सोशल प्लेटफ़ॉर्मों पर संयम बरतने की बात दोहराई गई। 


राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और तेज बयानबाज़ी

घटना के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज़ हो गये। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे कांग्रेस की ‘‘साजिश’’ करार दिया और आरोप लगाया कि उद्देश्य देश में अस्थिरता पैदा करना है—उनके अपने शब्दों में, ऐसा माहौल खड़ा करना जिसे वे बांग्लादेश, नेपाल या फिलीपींस जैसी परिस्थितियों से जोड़ते हैं। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों को बाहरी या विदेशी एजेंटों से जोड़कर पेश करने की कोशिश की जा रही थी, पर जांच से असली चिह्न कांग्रेस के ही पैरों तले निकला। संदेश का तड़का तीखा था—दल के एक प्रवक्ता ने कांग्रेस व उसके नेताओं पर देश-विरोधी राग छेड़ने का गंभीर आरोप लगाया और कहा कि जिनसे जनता का भरोसा नहीं बन पा रहा, वे देश को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं। 


बयान में व्यक्तिगत आरोपों के स्वर थे—कुछ वक्तव्य सीधे-सीधे राहुल गांधी और गोपनीय विदेशी हितों का जिक्र करते थे—पर साथ ही यह भी कहा गया कि ऐसे प्रयास सफल नहीं हुए और भारतीय जनता लाखों वर्षों की सभ्यता और समझदारी के साथ किसी भी खुफिया साजिश को पहचान लेती है। भाजपा ने सार्वजनिक रूप से यह चेतावनी भी दी कि अगर कोई देश को तोड़ने की कोशिश करेगा, तो लोग उसका जवाब देंगे। 


सरकार की और क्या योजना है?

केंद्र ने बयान में दो बातें स्पष्ट कीं: एक, लद्दाख में स्थिति नियंत्रण में लाने के प्रयास जारी हैं और प्रशासन संवैधानिक उपायों के माध्यम से स्थानीय मांगों का समाधान करना चाहता है; दो, विवादास्पद या भड़काऊ सामग्रियों को फैलाने से बचने की अपील। उच्चाधिकार प्राप्त समिति की अगली तय बैठक छह अक्टूबर को प्रस्तावित है, जबकि 25–26 सितंबर को लद्दाख के नेताओं के साथ और बैठकों का आयोजन भी प्रस्तावित है—इससे संकेत मिलता है कि बातचीत की प्रक्रिया अभी भी जिंदा है और समाधान की दिशा में काम चल रहा है। 


नोट करने योग्य है कि मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि जिस मुद्दे पर वांगचुक भूख हड़ताल कर रहे थे—छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने व राज्य का दर्जा—उस पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति में चर्चा चल रही है। कई नेताओं ने उन्हें शांति बनाए रखने और हड़ताल खत्म करने की अपील की थी, पर वांगचुक ने आन्दोलन जारी रखा और विवादित तर्ज़ के उदाहरणों का हवाला दे कर लोगों को गुमराह करने का आरोप भी लगाया गया।


लद्दाख की यह घटना सिर्फ़ हिंसा का एक क्षणिक विस्फोट नहीं रही; यह राजनीतिक तनाव, समाज में बढ़ती ध्रुवीकरण और सूचना-प्रवाह की संवेदनशीलता का प्रतिबिंब है। एक तरफ़ प्रशासन संवाद व संवैधानिक प्रक्रियाओं के जरिए समाधान की बात कर रहा है और कई संवैधानिक व प्रशासकीय कदम उठाये जा चुके हैं, तो दूसरी तरफ़ राजनीतिक दलों के तीखे बयानों ने चित्र को और जटिल बना दिया है। स्थिति फिलहाल नियंत्रण में बतायी जा रही है, पर फैसला वही होगा जो बातचीत, भरोसे और क्षेत्रीय जनता की वास्तविक मांगों के धरातल पर सुलझेगा।

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