कैंसर से डर नहीं जागरूकता और समय पर जांच है बचाव का रास्ता

कैंसर से डर नहीं जागरूकता और समय पर जांच है बचाव का रास्ता

रोहतक: कैंसर आज भी महिलाओं के लिए सबसे बड़ी स्वास्थ्य चिंताओं में से एक है, खासतौर पर टियर-2 शहरों में यह चुनौती और भी जटिल हो जाती है। यहां की महिलाएं प्रायः अपने परिवार को प्राथमिकता देती हैं और अपनी सेहत को पीछे रख देती हैं। जब तक वे डॉक्टर से सलाह लेती हैं, तब तक बीमारी अक्सर बढ़ चुकी होती है। यही देर से रिपोर्ट करना महिलाओं में कैंसर के बढ़ते खतरे का मुख्य कारण है।

 

महिलाओं में सबसे ज्यादा पाए जाने वाले चार प्रमुख कैंसर हैं – ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, ओवरी कैंसर और यूटेराइन (एंडोमेट्रियल) कैंसर। इन सबकी पहचान अलग-अलग होती है, लेकिन समय पर जागरूकता और कार्रवाई जीवन बचा सकती है।

 

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के गाइनी सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग की कंसल्टेंट डॉ. सरिता कुमारी ने बताया कि “ब्रेस्ट कैंसर भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसर है। अक्सर यह गलत धारणा होती है कि यह केवल बुजुर्ग महिलाओं को प्रभावित करता है, जबकि सच्चाई यह है कि तीस वर्ष की आयु की महिलाओं में भी इसके केस देखे जा रहे हैं। ब्रेस्ट में गांठ, निप्पल से स्राव या त्वचा की बनावट में बदलाव इसके प्रमुख संकेत हो सकते हैं। 30 वर्ष की आयु के बाद हर महीने स्वयं जांच और 40 के बाद नियमित मैमोग्राफी करवाना जीवनरक्षक कदम है। सर्वाइकल कैंसर रोके जा सकने के बावजूद महिलाओं में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। इसका मुख्य कारण एचपीवी वायरस का संक्रमण है। एचपीवी वैक्सीन और नियमित पॅप स्मीयर टेस्ट से इसकी रोकथाम संभव है। दुर्भाग्यवश, छोटे शहरों की महिलाएं झिझक के कारण गायनकोलॉजिकल जांच से बचती हैं, जिससे इलाज में देरी होती है।“

 

ओवरी कैंसर - इसे “साइलेंट किलर” भी कहा जाता है क्योंकि इसके लक्षण बहुत सामान्य लगते हैं – जैसे पेट फूलना, पेट में हल्का दर्द या बार-बार पेशाब आना। रेवाड़ी जैसी जगहों पर कई महिलाएं इन्हें सामान्य पाचन समस्या मानकर नजरअंदाज कर देती हैं, जिससे कैंसर का पता देर से चलता है और इलाज कठिन हो जाता है। यूटेराइन कैंसर प्रायः रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के बाद महिलाओं में देखा जाता है। मेनोपॉज के बाद किसी भी प्रकार का खून आना चेतावनी संकेत है और तत्काल डॉक्टर को दिखाना चाहिए। मोटापा और हार्मोनल असंतुलन इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

 

डॉ. सरिता ने आगे बताया कि  “कई मिथक हैं जो महिलाओं को भ्रमित करते हैं – जैसे “कैंसर हमेशा जानलेवा होता है”, जबकि समय पर पहचान और इलाज से अधिकांश मामलों में रोग पूरी तरह ठीक हो जाता है। यह भी गलत है कि “ब्रेस्ट कैंसर केवल वंशानुगत होता है”; अधिकांश महिलाओं में पारिवारिक इतिहास नहीं होता। “पॅप स्मीयर टेस्ट दर्दनाक होता है” – यह धारणा भी गलत है, यह जांच सरल और त्वरित होती है। और यह सोचना कि “गांवों में महिलाएं सुरक्षित हैं” बिल्कुल गलत है, क्योंकि कैंसर हर जगह होता है, बस ग्रामीण क्षेत्रों में पहचान देर से होती है। टियर-2 शहरों में चिकित्सा से अधिक सामाजिक झिझक बड़ी बाधा है। महिलाएं शर्म, आर्थिक कठिनाइयों या सामाजिक कारणों से जांच टाल देती हैं। कुछ स्थानीय उपचारों पर निर्भर रहती हैं, जिससे कीमती समय निकल जाता है। खराब खानपान, खून की कमी और जांच केंद्रों की कमी भी स्थिति को गंभीर बनाती है।“

 

महिलाओं को यह समझना चाहिए कि उनकी सेहत ही परिवार की नींव है। नियमित जांच करवाना, स्वयं जांच की आदत डालना और बेटियों को एचपीवी वैक्सीन दिलाना छोटे लेकिन प्रभावी कदम हैं। कैंसर कोई अंत नहीं है। जागरूकता, साहस और समय पर कदम उठाने से महिलाएं न केवल खुद को बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर सकती हैं।

 

हर महीने ब्रेस्ट की स्वयं जांच करें, समय पर पॅप स्मीयर और मैमोग्राफी करवाएं, बेटियों को एचपीवी वैक्सीन दिलाएं, संतुलित आहार लें और सक्रिय रहें, और किसी भी असामान्य लक्षण पर डॉक्टर से तुरंत मिलें।

 

कभी भी अनियमित रक्तस्राव या दर्द को नजरअंदाज न करें, घरेलू नुस्खों पर पूरी तरह निर्भर न रहें, यह न मानें कि कैंसर का इलाज नहीं होता, डर या झिझक के कारण जांच टालें नहीं, और नियमित स्वास्थ्य जांच को देर न करें।

 

कैंसर से लड़ाई जागरूकता और आत्मविश्वास से जीती जा सकती है। महिलाएं यदि अपनी सेहत को प्राथमिकता दें तो एक स्वस्थ समाज की नींव मजबूत होगी।  

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