वैज्ञानिकों को इसका आइडिया समुद्र के सीपों से मिला, जो पानी के भीतर भी चट्टानों से मजबूती से चिपके रहते हैं। इसी तकनीक से प्रेरित होकर झेजियांग प्रांत के शोधकर्ताओं ने यह गोंद तैयार किया।
इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे हटाने के लिए किसी सर्जरी की ज़रूरत नहीं पड़ती, क्योंकि हड्डी जुड़ने के साथ-साथ यह खुद-ब-खुद शरीर में घुल जाता है।
अब तक 150 से ज्यादा मरीज़ों पर परीक्षण किया जा चुका है और सभी में यह बेहद कारगर साबित हुआ है। डॉक्टरों का कहना है कि इसमें हड्डियों को जोड़ने की ताकत इतनी है कि यह पारंपरिक धातु के रॉड या प्लेट की जगह ले सकता है। साथ ही, धातु प्रत्यारोपण से होने वाले संक्रमण का खतरा भी काफी कम हो जाएगा।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह बोन ग्लू खून से भरे माहौल में भी तुरंत असर दिखाता है और 180 सेकंड (तीन मिनट) में हड्डी को जोड़ देता है।
अभी तक फ्रैक्चर के इलाज में “बोन सीमेंट” और “फिलर्स” का इस्तेमाल होता है, लेकिन उनमें चिपकने की क्षमता नहीं होती। 1940 के दशक में भी बोन ग्लू बनाने की कोशिशें हुई थीं, लेकिन वे जैविक रूप से शरीर के अनुकूल नहीं निकले।
अगर यह नई खोज बड़े पैमाने पर सफल रहती है, तो आने वाले समय में टूटी हड्डियों का इलाज ज्यादा आसान, तेज और सुरक्षित हो जाएगा।
दरअसल, बोन ग्लू का आइडिया नया नहीं है। 1940 के दशक में भी इस तरह के गोंद बनाने की कोशिशें हुई थीं। उस समय जिलेटिन, एपॉक्सी रेज़िन और एक्रिलेट्स से बने गोंद तैयार किए गए थे, लेकिन वे शरीर के अनुकूल नहीं साबित हुए। यही वजह रही कि उन्हें इस्तेमाल में नहीं लाया जा सका।
सफल परीक्षण और उम्मीदें
अभी तक 150 से अधिक मरीजों पर इसका परीक्षण किया जा चुका है और परिणाम बेहद सकारात्मक रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में यह खोज हड्डी से जुड़ी सर्जरी में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
भविष्य की ओर कदम
आज चिकित्सा जगत में यह नई खोज उम्मीद की एक बड़ी किरण है। अगर यह बड़े पैमाने पर सफल रही, तो आने वाले वर्षों में मरीजों को फ्रैक्चर के इलाज के लिए न तो लंबे ऑपरेशन कराने की ज़रूरत होगी और न ही धातु के प्रत्यारोपण का बोझ उठाना पड़ेगा।
संक्षेप में कहें तो, चीन का यह बोन ग्लू चिकित्सा विज्ञान में एक ऐसा अध्याय खोल सकता है, जो लाखों-करोड़ों मरीजों की ज़िंदगी आसान बना देगा।
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