किडनी ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में लगातार हो रही तरक्की, जानिए इसकी शुरुआत से लेकर अबतक की कहानी

कानपुर। वक्त के साथ-साथ किडनी ट्रांसप्लांट के हालात भी बदल रहे हैं. 23 दिसंबर 1954 को अमेरिका के बोस्टन में पहली सफल किडनी ट्रांसप्लांट की गई थी, जिसने किडनी की आखिरी स्टेज के मरीजों को जिंदगी की एक नई उम्मीद दी थी।  

नई दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में यूरोलॉजी रीनगल ट्रांसप्लांट एंड रोबोटिक्स विभाग के चेयरमैन डॉक्टर अनंत कुमार ने किडनी ट्रांसप्लांट को अहम जानकारियां साझा की किडनी ट्रांसप्लांट के शुरुआती दौर में लंबे समय तक ग्राफ्ट जीवित रहना आम नहीं था फिर धीरे-धीरे नई दवाएं आई और ESRD के मामलों में किडनी ट्रांसप्लांट को ही सबसे बेहतर विकल्प समझा जाने लगा। मौजूदा वक्त में सिलेक्ट को स्टैंडर्स माना जा रहा है, ज्यादातर मरीजों के लिए स्टेरॉइड्स के साथ टैक्रोलिमस और माइसोफेनोलेट का इस्तेमाल किया जाता है इम्यूनोसप्रेशन या स्टेरॉयड फ्री थेरेपी से बचने के सीएनआई के प्रयास बहुत सफल नहीं रहे। बेलाटासेप्ट भी उपलब्ध है। इसके अलावा कई ग्रुप सेल थेरेपी पर काम कर रहे हैं। एंटीबॉडी मीडिएटेड रिजेक्शन (एएमआर) को ट्रीट करने के लिए इम्यूनोमॉड्यूलेटरी दवाइयां अंडर ट्रायल हैं।

किडनी ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में लगातार हो रही तरक्की, जानिए इसकी शुरुआत से लेकर अबतक की कहानी

अब तक एंटी-HLA एंटीबॉडीज का पता लगाने के लिए सीडीसी को ही विकल्प माना जाता था. हालांकि, इसको लेकर सटीकता की कमी है, क्योंकि बहुत फाल्स पॉजिटिव फाल्स नेगेटिव रिपोर्ट्स आई हैं. हालांकि, अब जो LUMINEX टेक्नोलॉजी है वो ज्यादा तेज और सेंसिटिव है। ट्रांसप्लांट में सबसे ज्यादा मुश्किल अंगों का मिलना होता है, भारत में लिविंग डोनर की मदद से ये काम किया जा रहा है। डोनर की समस्या में के प्रयास किए जा रहे हैं, बुजुर्ग डोनर की डायबिटीज को अब बाधा नहीं समझा जा रहा है, नियंत्रित हाइपरटेंशन वाले मरीजों को भी डोनर के रूप में अब स्वीकार किया जा रहा है।

अब ब्लड ग्रुप की बाध्यता भी नहीं रही है हालांकि, इस तरह के मामलों में ट्रांसप्लांटेशन के बाद ज्यादा रिस्क रहता है। स्वैप ट्रांसप्लांट भी अब आम है। पेयर्ड / डोमिनो ट्रांसप्लांट भी शुरू हो गए हैं। उत्तर भारत के राज्यों में मृत व्यक्ति को डोनर के रूप में काफी इस्तेमाल किया जा रहा है हालांकि, इस तरह के डोनर केस में जीवित डोनर की तुलना में डीजीएफ का खतरा अधिक होता है इस दिशा में कुछ सुधार हुआ है। नॉर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूशन (एनएमपी) की मदद से डीजीएफ में कमी आई है इम्यूनो बायोलॉजी और फार्माकोथेरेपी को लेकर समझ बढ़ी है, बावजूद इसके ट्रांसप्लांट सर्जरी के क्षेत्र में ज्यादा विकास नहीं हुआ है। दुनियाभर में मानकीकृत किडनी प्लेसमेंट और वैस्कुलर / यूरेटेरिक अनास्टोमोसिस जारी है।

किडनी ट्रांसप्लांट का इतिहास : राल्फ क्लेमैन ने 1991 में लेप्रोस्कोपिक नेफ्रेक्टोमी की थी इसके बाद 1995 में रेटनर पहली डोनर नेफ्रेक्टोमी की इसमें डोनर सुरक्षित रहा, और ये देखकर लोग डोनेट की तरफ कदम बढ़ाने लगे इसके बाद तमाम डॉक्टर ने मिनिमली इनवेसिव ट्रांसप्लांट सर्जरी तक की, हालांकि ये कभी ज्यादा पॉपुलर नहीं हुई। foaph सर्जिकल सिस्टम (dvss) ने मिनिमल इनवेसिव सर्जरी के क्षेत्र में बहुत क्रांति की है।

शिकागो के गिलीनोटी ने 2010 में पहली टोटल रोबोट की मदद से किडनी ट्रांसप्लांट ( RAKT) सर्जरी की। उसके बाद से भारत में और यूरोप में भी इस तरह की सर्जरी होने लगी। मौजूदा वक्त में हर साल ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में 2000 से ज्यादा पेपर प्रकाशित हो रहे हैं ये इस बात का सबूत है कि इस फील्ड में किस गति से तरक्की हो रही है। लगातार हो रहे एडवांसमेंट से किडनी ट्रांसप्लांट और अधि सुरक्षित बेहतर रिजल्ट वाली होने की संभावना है साथ ही मिनिमली इनवेसिव रोबोट असिस्टेड सर्जरी भी स्टैंडर्ड बन जाएगी।  

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