कीमो नहीं अब टार्गेटेड थेरेपी से कैंसर का उपचार, जानें-थेरेपी कैसे बन रही वरदान

कीमो नहीं अब टार्गेटेड थेरेपी से कैंसर का उपचार, जानें-थेरेपी कैसे बन रही वरदान

गंभीर कैंसर रोगियों के उपचार में टार्गेटेड थेरेपी से कैंसर रोगियों के उपचार में नई क्रांति आई है। लंग कैंसर के रोगियों को कीमोथेरेपी के बजाय विशेषज्ञ अब टार्गेटेड थेरेपी दी जा रही है। इससे रोगियों में जीवन की संभावना भी बढ़ रही है।

अलीगढ़, देश में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ने के बावजूद आंकोलाजी के क्षेत्र में हुई नई तरक्की ने कारगर नतीजे दिए हैं। विभिन्न प्रकार के कैंसर के बेहतरीन उपचार विकल्पों से मृत्यु दर में कमी आ रही है। गंभीर कैंसर रोगियों के उपचार में टार्गेटेड थेरेपी से कैंसर रोगियों के उपचार में नई क्रांति आई है। लंग कैंसर के रोगियों को कीमोथेरेपी के बजाय विशेषज्ञ अब टार्गेटेड थेरेपी दी जा रही है। इससे रोगियों में जीवन की संभावना भी बढ़ रही है।

रामघाट रोड स्थित एक निजी हास्पिटल में आईं मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हास्पिटल, पटपड़गंज में मेडिकल आंकोलाजी की वरिष्ठ निदेशक डा. मीनू वालिया ने कहा, 'मरीज के मस्तिष्क में हो रहे बदलाव के साथ एडवांस्ड (चौथा चरण) का लंग कैंसर के रोगियों को ओरल टार्गेटेड थेरेपी पर रखा जाता है। कई रोगियों में इलाज के तीन माह में ही काफी सुधार देखा बाद की जांच से भी बीमारी के स्थिर हो जाने का पता चला। पहले लंग कैंसर के एडवांस्ड स्टेज वाले मामले में सिर्फ कीमोथेरेपी ही विकल्प होता था। और इस चरण के बाद मरीज के जीवित रहने की संभावना 6-8 महीनें ही होती थी। लेकिन कई लक्ष्यों के साथ मोलेकुलर प्रोफाइलिंग पद्धति के आने से न सिर्फ इलाज में कीमोथेरेपी की जरूरत रह गई है, बल्कि रोगी के जीवित रहने की संभावना भी लंबी होती है।

सबसे घातक है लंग कैसर

डा. मीनू वालिया के अनुसार सभी तरह के कैंसर में लंग कैंसर सबसे घातक माना जाता है, जिसमें मृत्यु दर वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा होती है। इससे पीड़ित होने के बारे में कम जानकारी और इसके लक्षणों को बहुत बाद में पहचाने जाने (कई बार तो इसे टीबी भी मान लिया जाता है) के कारण यह जानलेवा हो जाता है और ज्यादातर रोगियों में यह विकसित होकर आक्रामक हो जाता है। हालांकि, इलाज में तरक्की और नए इलाज की उपलब्धता के कारण लंग कैंसर अब एडवांस्ड स्टेज तथा बुजुर्गों की बीमारी में भी ठीक हो सकता है। हमेशा यही सलाह दी जाती है कि इस बीमारी की शुरुआती चरण में पहचान के लिए समय-समय पर अपनी जांच कराते रहें। शुरू में ही पता चल जाने पर आधुनिक पद्धतियों की मदद से बेहतरीन परिणाम मिल सकते हैं। लिहाजा यह जान लेना जरूरी है कि इस बीमारी में जागरूकता की अहम भूमिका होती है।

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