राँची:
देश में मानसून की
बौछार की शुरूआत के
साथ आर्द्रता के स्तर में
अचानक वृद्धि हुई है। ये
बढ़ा हुआ स्तर खाँसी,
खरास, बलगम और घरघराहट
जैसी सांस से संबंधित
समस्याओं से जुड़ा है
जो फेफड़ों को गंभीर रूप
से प्रभावित करते हैं।
आर्द्रता
हवा को स्थिर बना
देती है जिसके कारण
प्रदूषक और एलर्जी पैदा
करने वाले जैसे धूल
और धुआं सांस की
नली में फंस जाते
हैं।
साकेत
स्थित मैक्स हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर
और पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन
के एसोसिएट डायरेक्टर और हेड, डॉक्टर
प्रशांत सक्सेना ने बताया कि,
“बारिश का मौसम आनंद
और खुशी का माहौल
तैयार करता है लेकिन
साथ ही यह नमी
के स्तर को भी
बढ़ाता है, जिसके कारण
घरों और कार्यस्थल में
काई जमने लगती है।
यह सामान्य रूप से फेफड़ों
को प्रभावित कर सकता है
जो आमतौर पर खांसी, घरघराहट,
अस्थमा या ब्रोंकाइटिस की
समस्याओं को बढ़ावा देता
है। इसके अलावा, नम
हवा भारी होती है
क्योंकि इसमें पानी की मात्रा
अधिक होती है। भारी
हवा शरीर में ज्यादा
देर तक रूकती है।
इस भारी हवा को
शरीर में जगह देने
के लिए शरीर को
कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
इसलिए शरीर अधिक ऑक्सीजन
की मांग करता है।
इससे आपको सांस लेने
में मुश्किल महसूस हो सकती है।”
बढ़ी
हुई आर्द्रता विभिन्न कारणों से लक्षणों को
बढ़ा सकती है। जब
नमी का स्तर अधिक
होता है तो शरीर
को सांस लेने के
लिए अधिक मेहनत करनी
पड़ती है।
सीओपीडी
और अस्थमा जैसे फेफड़ों के
रोगों से पीड़ित रोगियों
के लिए बढ़ी हुई
आर्द्रता नुसकानदायक हो सकती है।
यह उनके लक्षणों को
और खराब कर सकती
है। यह सांस की
कमी और थकान को
बढ़ाता है।
डॉक्टर
प्रशांत सक्सेना ने आगे बताया
कि, “क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी और अस्थमा ऐसी
बीमारियां हैं जो किसी
व्यक्ति के लिए आसानी
से सांस लेना मुश्किल
बना देती हैं। ऐसी
स्थिति में मरीज को
अस्पताल में भर्ती करना
आवश्यकता हो जाता है।
आर्द्र मौसम में फेफड़ों
की बीमारियों को रोकने के
लिए, तरल पदार्थ पीने
और ताजा फल खाने
की सलाह दी जाती
है। एसी और कार
हीटर की नियमित सर्विसिंग
आवश्यक है क्योंकि यह
कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसों
को बाहर छोड़ता है।
घर से बाहर जाने
से पहले मौसम की
जांच जरूर करें।”
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